• 28 Apr, 2025

कवि बसंत दीवान के जन्म दिन 7 अगस्त 1938 पर विशेष

कवि बसंत दीवान के जन्म दिन 7 अगस्त 1938 पर विशेष

• शोषण, अन्याय, गरीबी और दमन के खिलाफ आवाज बुलंद करने में सबसे आगे रहे कवि बसंत दीवान

बसंत दीवान हृदय से बहुत उत्कृष्ट कवि हैं, उनके कवि रूप से मेरा परिचय बहुत पुराना है। आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व एक संवेदनशील कवि के रूप में उनसे मेरा परिचय हुआ।  उस समय उनकी एक छोटी सी पुस्तिका प्रकाशित हुई थी। नाम था- नवा बिहान। उनकी काव्य प्रतिभा ने उसी समय मुझे प्रभावित कर लिया था । उनकी भाषा में ओज है सहज प्रवाह है। 
बसंत दीवान जनता के अपने कवि हैं। साहित्यिक भाषा में उन्हें जनकवि कह सकते हैं। शोषण, अन्याय, गरीबी और दमन के खिलाफ आवाज बुलंद करने में सबसे आगे रहे। यही कारण है कि उनकी वाणी में विद्रोह का प्रखर स्वर हमें सुनाई पड़ता है। समय की पुकार पर वे उसे अपनी लेखनी में ही नहीं उठाते वरन मुठ्टी तान कर सड़क पर भी उतर आते हैं। वस्तुतः वे अपने को आम जनता के बीच ही पाते हैं, उनके दुःख-सुख को भोगते हैं। उन्होंने कभी अपने को विशिष्ठ श्रेणी में रखने का प्रयास नहीं किया। आम तौर पर छत्तीसगढ़िया सीधा-साधा भोला-भाला ही होता है। इस अर्थ में सबसे बढ़िया छत्तीसगढ़िया बसंत दीवान हैं।  वो जो कहना चाहते हैं साफ-साफ कहने का साहस रखते हैं। 
    उन्होंने छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा तत्कालीन सांसद डॉ. खूबचंद बघेल के साथ गांव -गांव घूम कर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर अपनी कविताओं के माध्यम से लगभग दस वर्षों तक अलख जागाया। पृथक छत्तीसगढ़ निर्माण आंदोलन में उनकी सक्रीय भूमिका उल्लेखनीय रही है।

  • हरि ठाकुर, कवि, विचारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,  4 अप्रैल 1988. रायपुर
        (अनुगूंज बसंत दीवान की कविताएं से साभार)

बसंत दीवान की कविता

हमारी बस्ती में ..

  रहते हैं बहुत से अफसर- थानेदार हमारी बस्ती में
  मगर उचक्के उनसे भी होशियार हमारी बस्ती में
  नम्बर एक के धंधे में क्या रक्खा है..
  कई नंबर के होते हैं व्यापार हमारी बस्ती में।  
  अब आंसू-आंसू रोते हैं सद्भाव और भाईचारा,
  जगह -जगह पर भंजती है तलवार हमारी बस्ती में।


   जो शरीफ हैं वे रक्खें शराफत संभालकर
   लंगे-लुच्चे सारे ठेकेदार हमारी बस्ती में
    कानूनन जो काम-करम प्रतिबंधित हैं
   उन सबकी जय-जयकार हमारी बस्ती में।
  न डर, न भय, न लोक-लाज, अरदा- परदा
  खुल्लम-खुल्ला चले देह व्यापार हमारी बस्ती में


  अब घी, दूध-दही अक्खन-मक्खन सब सपने हैं
  नित बहती शराब की धार हमारी बस्ती में 
  जिनके दम पर मिली आजादी देश को
  हैं गरीब उनके ही परिवार हमारी बस्ती में। 
 

बसंत दीवान