• 28 Apr, 2025

पार्टियों के चुनावी वादे देख धान खरीदी की रफ्तार हुई कम

पार्टियों के चुनावी वादे देख धान खरीदी की रफ्तार हुई कम

• 32 सौ रुपये क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा कांग्रेस का, कर्जमाफी भी • भाजपा ने कहा 31 सौ रुपये क्विंटल की दर से 21 क्विंटल खरीदेगी • धान की ऊंची कीमत फसल खरीदी के किस मौसम में अभी तक स्पष्ट नहीं

रायपुर / दुर्ग।  छत्तीसगढ़ की सरकार बनने का दारोमदार तो किसानों पर ही रहा है। जिस भी पार्टी ने उनके फसल की अच्छी कीमत और बोनस देने का वादा किया सरकार उसी पार्टी की बनी है। जाहिर है धान खरीदी में पार्टियों के वादे का असर होता है। इस बार भी छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धआन को लेकर किसानों से राजनीतिक दलों के चुनावी वादे और त्यौहार का असर यहां धान खरीदी की गति पर भी हुआ है। 

   राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद शुरू होने के महीनेभर बाद भी किसानों से लगभग 31. 21 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया है जो पिछले साल इसी माह की या इसी अवधि की खरीद से बहुत कम है। एक ओर तो कांग्रेस ने 32 सौ रुपये क्लिंटल धान खरीदी के साथ किसानों को लुभाने के लिए कर्ज माफी का भी वादा कर दिया। कहा जा रहा है कि इसका असर चुनाव में हुआ है। इसी की तर्ज पर भाजपा ने भी 31 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से 21 क्विंटल धान खरीदी का वादा अपने घोषणा पत्र में किया है। 

    यहां दोनों दलों ने यह साफ नहीं किया है कि धान की यह कीमत किसानों को फसल खरीद के किस मौसम में दी जाएगी।  90 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में पिछले महीने क्रमशः 7 और 17 नवंबर को मतदान करवाये गए  थे।  वोटो की गिनती तीन दिसंबर को तय है। 

    राज्य के वरिष्ठ अफसरों के मुताबिक राज्य में एक नवंबर से किसानों से धान खरीदी शुरू होने के बद से बुधवार 28 नवंबर तक 3,17, 223 किसानों से 13, 20, 457. 80 मीट्रिक टन धान खरीदा जा चुका है। उन्होंने बताया कि पिछले खरीफ मौसम ( 2022-23) में 5.42  लाक किसानों से इसी अवधि (एक नवंबर से 29 नवंबर तक) की अवधि में 19.30 लाख मीट्रिक टन धान बेचा गया था।

   राज्य सरकार ने चालू मौसम के दौरान 130 लाख टन मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा है। एक सरकारी अफसर ने पिछले दिनों बताया कि किसानों से इस बार धान खरीदी के लिए 2739 खरीद केन्द्र स्थापित किये गए हैं। खरीद अभियान एक नवंबर 2023 को शुरू हुआ है और अगले वर्ष 31 जनवर2024 तक जारी रहेगा। 26.87 लाख किसानों ने अपने फसल बेचने के लिए पंजीकरण करवाया है।

  • किसान नतीजों का 3 दिसंबर तक इंतजार कर रहे हैं-
    दुर्ग जिले के पाटन विधानसभा क्षेत्र के सावनी गांव के एक किसान ने कि उनके क्षेत्र के अधिकतर किसानों ने अपना धान नहीं बेचा है उसका कारण ये है कि वे सब नई सरकार के गठन का इंतजार कर रहे हैं। भाजपा ने 31 सौ रुपये प्रति क्विंटल  की दर से 21 क्विंटल तक धान खरीद का वादा किया है पार्टी ने यह  भी कहा है कि धान खरीद का भुगतान एक ही बार में किया जाएगा जबकि मौजूदा कांग्रेस सरकार चार किस्तों में एमएसपी इनपुट सब्सिडी देती है। इसलिए किसान सभी तीन दिसंबर का इंतजार कर रहे हैं जब चुनाव के परिणाम आएंगे। ये किसान 18 एकड़ रकबे में धान की खेती करते हैं और इन्होंने भी अभी तक अपनी उपज नहीं बेची है। 

         उन्होंने कहा खरीद केन्द्र गांव में ही है और इस बार फसल कटाई में थोड़ी देर भी हुई और धान में थोड़ी नमी भी है। बताते चलें कि धान में 17 फीसदी तक नमी ही स्वीकार्य होती खरीद के समय। एक कारण यह भी है कि किसान धान नहीं बेच रहे हैं।   इन्हीं की तरह दुर्ग जिले के रौता गांव के एक अन्य किसान ने  बताया कि चुनाव के साथ ही नवंबर में दीवाली त्योहार ने भी धान खरीद की रफ्तार को प्रभावित किया है। इस किसान ने  बताया कि वह 26 एकड़ रकबे में धान की फसल लगाता है और अब तक साढ़े सात एकड़ रकबे की धान की फसल बेच चुका है। किसान का कहना था कि यदि भाजपा आती आती है तो 21 क्लिंटल धान प्रति एकड़ धान खरीदा जाएगा और यदि वह ऐसे में अपना धान पहले ही बेच देता है तो उसे हर एकड़ में एक क्लिंटल धान  कम बेचने का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • 2018 में भी देखी गई थी यही स्थिति-
    धान खरीदी की धीमी गति ठीक इस बार की ही तरह 2018 में चुनाव के बाद देखी गई थी जब कांग्रेस ने 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदा और कर्ज माफी का भी वादा किया था। इस बार भी किसानों को पार्टियों की तरह ही चुनाव नतीजे का इंतजार है। दुविधा इसलिए भी है कि राजनीतिक पार्टियों ने अपने अपने घोषणा पत्र में यह साफ नहीं किया है कि धान खरीद पर अधिक कीमत किस खरीफ सीजन से दी जाएगी।
  • प्रति दिन खरीद की सीमा कम कर दिये जाने का भी असर-
    उपार्जन केन्द्रों से निरंतर पहल को  मिली जानकारी के मुताबिक  पिछले वर्ष के मुकाबले प्रदेश के उपार्जन केन्द्रों में धान की आवक प्रतिदिन लगभग 27 से 28 फीसदी है इसकी वजह कर्जमाफी और धान के समर्थन मूल्य को लेकर राजनीतिक दलों के चुनावी  वायदों के अलावा प्रतिदिन उपार्जन केन्द्रों में धान खरीद की लिमिट एनआईसी द्वारा घटाया जाना भी माना  जा रहा है।