• 28 Apr, 2025

झारखंड के इंजीनियर ने जलकुम्भी से बनाई ‘फ्यूजन साड़ी’

झारखंड के इंजीनियर ने जलकुम्भी से बनाई ‘फ्यूजन साड़ी’

■ करीब 25 किलो जलकुम्भी से एक साड़ी तैयार होती है। ■ फ्यूजन साड़ी की कीमत दो से साढ़े तीन हजार रुपये के बीच रखी गई है। ■ इससे ‘बंगाल का आतंक’ मानी जाने वाली जलकुम्भी से तो निजात मिल ही रही है, साथ ही सस्टेनेबल फैशन को भी बढ़ावा मिल रहा है। ■ आज उनके साथ गांव की करीब 450 महिलाएं काम कर रही हैं। आमतौर पर तीन से चार दिन में ये विशेष साड़ी तैयार कर ली जाती है।

रांची । गौरव आनंद झारखंड के रहने वाले हैं और एक युवा इंजीनियर हैं। इन दिनों उनकी चहुंओर चर्चा है क्योंकि उन्होंने तालाब और नदियों में पाई जाने वाली खरपतवार के इस्तेमाल से साड़ियों का निर्माण कर एक नई पहल की है।  गौरव आनन्द ने जलाशयों में और नदियों के पानी मे मिलने वाली जलकुंभियों से साड़ियां बनाई तो लोग हैरत में हैं।   गौरव ने 16 साल के अपने कारपोरेट कैरियर को पांच साल पहले छोड़  दिया इससे पहले वे गंगा नदी की सफाई के लिए बने मिशन में हिस्सा लेने के लिए काम से छुट्टी ली थी। जहां के अनुभव और जरूरत ने गौरव के जीवन  की दिशा ही बदल कर रख दी। इससे न केवल पर्यावरण की सुरक्षा का एक रास्ता मिला है, बल्कि सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला है।

  • ‘नमामि गंगे’ अभियान के तहत आया आइडिया

46 वर्षीय गौरव आनंद जमशेदपुर में टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज में बेहतरीन पैकेज वाली नौकरी कर रहे थे। नौकरी करते हुए वह पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर वर्षों से काम भी कर रहे थे। वर्ष 2018 में उन्हें ‘नमामि गंगे’ मिशन से जुड़कर गंगा की सफाई के अभियान में सहभागी बनने का मौका मिला। इस अभियान से लौटकर उनकी जिंदगी का मकसद बदल गया। उन्होंने नदियों और जलस्रोतों की सफाई का अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत ‘स्वच्छता पुकारे’ फाउंडेशन के बैनर तले रविवार और छुट्टियों के दिन जमशेदपुर की स्वर्णरेखा, खरकई नदी और विभिन्न जलाशयों की सफाई की जाती थी।

इसी दौरान गौरव ने पाया कि अधिकतर जलाशय जलकुम्भी से भरे रहते हैं। बंगाल में ही नहीं बल्कि बहुत सी जगहों पर जलकुंभियों को एक समस्या की तरह ही लिया जाता है। इनकी बढ़त इतनी तेज होती है कि रफ्तार से बढ़ते हुए यह जलाशयों या पानी के  जिन  स्त्रोत में होते हैं उन्ही के अन्य जलीय जंतुओं की बाढ़ को प्रभावित करने लगते हैं। इन तरह की हानि से बचने के लिए इनकी बढ़त रोकना जरूरी हो जाता है। गौरव ने वहीं रुकना उचित समझा और काम करते रहे। इन्हें हटाए जाने के कुछ समय बाद ये फिर फैल जाती थीं। फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न इसे संसाधन के रूप में विकसित किया जाये? आखिर इनमें कुछ तो गुण होंगे ही।

गौरव के अनुसार, उन्होंने रिसर्च के दौरान पाया कि जलकुम्भी में सेल्युलोज होता है। यह फाइबर की बुनियादी जरूरत है। इसके बाद उन्होंने ऐसे लोगों से संपर्क किया जो जलकुम्भी से फाइबर निकालने में मदद कर सकें। रिसर्च और कुछ प्रयोगों से इसका हल निकल आया। उन्हें पता चला कि असम और पश्चिम बंगाल में कुछ लोग छोटे स्तर पर इस पर काम कर रहे हैं। उनसे प्रेरित होकर उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया और इनसे लैंपशेड, नोटबुक और शोपीस तैयार करने में सफल रहे। इसी बीच उन्होंने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर खुद को पर्यावरण संरक्षण के प्रयोगों और प्रयासों के प्रति समर्पित कर दिया।

  • सैकड़ों महिलाओं को मिला रोजगार

उन्होंने देखा कि जलकुंभी इसकदर तेजी से बढ़ते हैं कि उनके नीचे पानी के अन्य जंतुओं का जीवन दूभर हो जाता है। गौरव ने सफाई करते हुए सोच कि इनके तने जिन्हें काटकर बाहर निकल रहे हैं जिन्हें सुखाकर किसी तरह इनके रेशे निकाले जा सकते हैं। गौरव ने देखा कि जलकुम्भी के सेल्युलोज को जूट की तरह धागे में बदला जा सकता है, इसलिए उन्होंने बुनकरों को सूत बनाकर देने का फैसला किया। जलकुम्भी से निकले सूत में रुई आदि मिलाकर फ्यूजन साड़ी बनाई जाती है।फिर यह प्रयोग भी किया और उसके  कटे हुई तनों को हफ्तेभर तक धूप में सुखाकर उसके रेशे निकाल लेने का इंतजाम किया जाता है।  रेशे को गर्म पानी से धोया जाता है जिससे उसके भीतर के कीड़े आदि बाहर निकाले जा सकें। एक बार रेशों की सफाई हो जाने पर उसमे डाई लगाकर उनकी रंगाई की जाती है। इसके बाद इनकी सूत बानाने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है। अब इनसे बने सूत को सामान्य सूत के साथ ब्लेंड किया जाता है। यानी मिलाकर एक मिश्रित धागा बनाया जाता है। एक साड़ी बनाने के लिए 25  किलो जलकुंभियों के तनों की जरूरत पड़ती है।  गौरव के बनाये धागों से बुनकर महिलाओं ने 50 मिश्रित धागों की साड़ियां  बनाई हैं। इससे ‘बंगाल का आतंक’ मानी जाने वाली जलकुम्भी से तो निजात मिल ही रही है, साथ ही सस्टेनेबल फैशन को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साल 2022 में उन्होंने कुछ बुनकरों और गांव की महिलाओं की मदद से पहली फ्यूजन साड़ी बनाई थी। आमतौर पर तीन से चार दिन में ये विशेष साड़ी तैयार कर ली जाती है। जलकुम्भी से साड़ियां बनाने के लिए जलकुम्भी की लुगदी से फाइबर बनाया जाता है। इन रेशों से धागा बनता है और इन पर रंग लगाया जाता है। इन्हीं धागों से बुनकर साड़ियां बनाते हैं।

  • हजारों में बिकती हैं साड़ियां

साड़ी बनाने के लिए जलकुम्भी और कपास का अनुपात 25:75 रखा जाता है। 100 फीसदी जलकुम्भी से साड़ियां बनाई जायें तो यह कमजोर होगी इसलिए इसमें कपास, पॉलिएस्टर, तसर और अन्य फाइबर जैसी सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। इस फ्यूजन साड़ी की कीमत दो से साढ़े तीन हजार रुपये के बीच रखी गई है।

  • काम न होता तो बुनकर महिलाओं को विकल्प खोजना पड़ता - 

रेशों को प्रसंस्कृत करके उससे हथकरघा में देकर महिलाओं को इससे साड़ी बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अभी तक इस काम मे 450 से भी ज्यादा महिलाओं को रोजगार दिया है। वे यदि यह काम नही करतीं तो उन्हें बुनकर होने के बाद भी किसी और काम के लिए बाहर निकलना पड़ता। अब ये बुनकर महिलाएं गौरव के ट्रेनिंग के बाद आपने हुनर का सदुपयोग कर पा रहीं हैं। वे सभी गौरव के इस प्रयास से बहुत लाभान्वित हुई हैं और खुश हैं। उन सभी महिलाओं ने उन्हें  अपनी पसंद के काम से जीविका चलाने में मदद करने के लिए गौरव का आभार माना है।