• 28 Apr, 2025

स्मृति शेष : बाबासाहेब पुरंदरे

पुणे. “इतिहास हमारे अंदर स्वयं को पहचानने की ललक और क्षमता उत्पन्न करता है व सही तथा ग़लत में अंतर समझने की दृष्टि देता है।इतिहास से सबक लेकर युवा पीढ़ी को अपने देश को अधिक सुदृढ़ तथा सम्पन्न बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।”  इस विचार के साथ कार्य करते हुए इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने में जुटे रहे कर्मयोगी बाबासाहेब पुरंदरे आने वाली पीढ़ी के लिए मूल्यवान थाती छोड़ गए हैं।
बाबासाहेब को देश में “शिवशाहीर” के नाम से जाना जाता है। मराठी भाषा में “शाहीर” शब्द का अर्थ है-राष्ट्र के वीरों की शौर्य गाथाओं को जनमानस तक पहुंचाने वाला कवि-कलाकार।बाबासाहेब की हर सांस में शिवाजी बसते थे।
29 जुलाई 1922 को पुणे के पास सासवड नामक छोटे-से स्थान में जन्मे बाबासाहेब का असली नाम बलवंत पुरंदरे था, उनके पिता मोरेश्वर पुरंदरे  एक शिक्षक थे।बाबासाहेब की स्कूली शिक्षा पुणे के भावे हाई स्कूल में हुई। ऐतिहासिक विषयों पर उनके प्रेम का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस आयु में बच्चे खिलौनों की मांग करते हैं उस आयु में बाबासाहेब अपने पिता से शिवाजी के किले और ऐतिहासिक स्थानों पर ले जाने कहते थे। बचपन से ही उन्हें कविताएं पढ़ने का बहुत शौक था विशेषकर ऐतिहासिक चरित्रों की वीर-रस से ओतप्रोत कविताएं। मराठा शासक छत्रपति शिवाजी पर आधारित कविताएं पढ़कर वे शिवाजी के चरित्र से गहरे प्रभावित हुए।  धीरे-धीरे कविताएं पढ़ने की रुचि कविता लेखन में बदल गई। किशोर वय में ही उनकी कविताएं स्थानीय समाचार-पत्रों में प्रकाशित होने लगी।
मात्र 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने शिवाजी महाराज पर एक पुस्तक का लेखन कर अपनी गंभीर ऐतिहासिक दृष्टि व शिवाजी-प्रेम का परिचय दिया। फिर उन्होंने देश के इतिहास व संस्कृति पर शोध करना शुरु कर दिया।शोध करते-करते बाबासाहेब के मन में छत्रपति शिवाजी पर आधारित एक महानाट्य के लेखन का विचार आया। इसके लिए उन्होंने शिवाजी के काल को अच्छी तरह समझने शिवाजी के 30 किलों की और जिन-जिन स्थानों पर शिवाजी गये थे उन स्थानों की कई बार यात्राएं की और लंबे शोध के बाद महानाट्य  जाणता राजा   लिखा। जब यह नाटक पहली बार मंच पर अवतरित हुआ तो देश के तमाम दिग्गज नाट्य निर्देशकों , कला समीक्षकों और कलाकारों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।200 कलाकारों व हाथी,घोड़े,ऊंट तथा बाबासाहेब की अनोखी निर्देशकीय दृष्टि से सजे इस नाटक ने इतिहास रच दिया। देश के विभिन्न शहरों सहित विदेशों में भी इसके कई सफल मंचन किये गये।अमेरिका के 16 शहरों में इसके मंचन हुए। इस मूल मराठी नाटक का बाद में हिंदी,अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बाबासाहेब ने शिवाजी के चरित्र पर देश-विदेश में 12000 से अधिक व्याख्यान दिये।उन्हें शिव-ऋषि भी कहा जाता था। 99 वर्षों का जीवन जीने के बाद यह अद्वितीय इतिहासकार, लेखक,नाट्य निर्देशक और ओजस्वी वक्ता 15 नवंबर को अपने आराध्य शिवाजी की आत्मा में विलीन हो गया। इस कर्मयोगी को शत्-शत् नमन।      

सम्मान

1963 : सातारा की राजमाता द्वारा ‘शिवशाहीर’ की उपाधि

2007-08 : कालिदास सम्मान

2015 : महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार

2019 : पद्मविभूषण