• 28 Apr, 2025

महान कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन नहीं रहे..

महान कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन नहीं रहे..

• जन्म 7 अगस्त 1925, निधन 28 सितंबर 2023 • देश को अन्नपूर्ण बनाने मेडिकल और सिविल सेवा छोड़ी, संकल्प था -कोई भूखा न सोए इसे पूरा भी किया... • स्वामीनाथन की हरित क्रांति से महज 25 सालों में खाद्यान्न की कमी खत्म हो गई.... पूरी तरह आत्मनिर्भर हुआ देश।

चेन्नई । आप छोटे किसानों के लिए जो करते हैं उससे सभी किसानों को लाभ होता है। परिवार में एक महिला के लिए कुछ करते हैं तो फायदा पूरे परिवार को होता है। ये दो बातें महान कृषि वैज्ञानिक मोनकोंबु सांबसिवन स्वामीनाथन (98) की जिंदगी का दर्शन था। वे बापू से प्रभावित थे। भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का गुरुवार 28 सितंबर को चेन्नई में निधन हो गया।

देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का श्रेय पद्म विभूषण स्वामीनाथन को जाता है। तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि उनकी अंत्येष्टि शनिवार 29 सितंबर को करने की घोषणा की  थी और अंत्येष्टि पुलिस सम्मान के साथ की गई।

स्वामीनाथन के पिता डॉक्टर थे। उनका परिवार चाहता था कि वे भी पिता की ही तरह डॉक्टरी के पेशे में आएं पर उन्होंने मेडिकल के बजाय कृषि को चुना सिविल सेवा परीक्षा पास करके पुलिस सेवा के लिए चयनित हुए थे। एक साक्षात्कार में स्वामीनाथन जी ने बताया था कि गांधी जी के असहयोग आंदोलन के समय मैं छात्र था। तब स्टूडेंट्स क्लब में तमाम मुद्दों पर बहस होती थी।  इसी में एक बार ऐसी चर्चा हुई कि आजाद भारत में युवाओं का योगदान क्या होगा।  यह वही समय था जब बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था। लोगों के भूखे मरने की खबरें आती थीं। बकौल स्वामीनाथन मैने उस डिबेट में कहा था कि देश में कोई भी भूखा न रहे।  हालांकि तब यह मैने नहीं सोचा था कि सचमुच मैं ऐसा कर पाऊंगा। 

उल्लेखनीय है कि स्वामीनाथन की पहल के बाद हरित क्रांति के तहत देशभर के किसानों ने धान और गेहूं के ज्यादा उपज वाले बीज लगाना शुरू कर दिये। खेती में तब से ही आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल शुरू हुआ। वैज्ञानिक विधि से खेती शुरू हुई। इसी का सुफल था कि दुनिया में सबसे ज्यादा  खाद्यान्न की कमी वाला देश 25 साल में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन गया।

स्वामीनाथन ने अमेरिकन अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और दूसरे कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्म (एच वाय वी) के बीज भी विकसित किये थे। बोरलॉग को बाद में नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। स्वामीनाथन देश के आत्मनिर्भरता की इस यात्रा को अक्सर ही बेहद उत्साह से सुनाते थे। वे बताते थे कि आज़ादी के समय देश में गेहूँ का सालाना उत्पादन 60 लाख टन था। जो 1962 तक एक करोड़ टन तक हो गया। इसके बाद 1964 से 1968 के बीच यही उत्पादन 170 करोड़ टन पहुंच गया। इसे ही हरित क्रांति कहा गया। 

केन्द्र सरका ने 2004 में उनकी अध्यक्षता में स्वामीनाथन आयोग का गठन किया। आयोग ने किसानों की फसल के उचित दाम, उच्च गुणवत्ता वाले बीज देने, महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड देने जैसी सिफारिशें की थीं। 

स्वामीनाथन जी को 1967 में पद्म श्री, 1972 में पद्म भूषण और 1989 में पद्म विभूषण से  अलंकृत और सम्मानित किया गया। उन्हें रमन मैग्सेसे  और यूनेस्को महात्मा गांधी गोल्ड मेडल भी प्रदान किया गया। दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज से 81 मानद उपाधियां मिलीं। वे राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत किये गए थे।