नीति की सराहना, आक्रामक नीति से बैकफुट पर जा रहे नक्सली…
● बैठक- केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने सीएम साय की रणनीति को सराहा ● मंत्री शाह की अपील भटके युवा मुख्यधारा में लौटें
■ 500 वर्ग किमी जमीन की जानकारी मांगी राज्य सरकार ने नारायणपुर कलेक्टर से .. ■ सोनपुर - गारपा क्षेत्र को चुना गया है मेनुवर रेंज के लिए ■ 14 साल पहले कोंडागांव के पास ट्रेनिंग करने जा चुकी हैं सेना की 2 बटालियनें
दंतेवाड़ा। कितनी ही बार यहां के अबूझमाड़ क्षेत्र में फौज का प्रशिक्षण कैम्प शुरू करने की चर्चाएं शुरू हुईं और कहीं खो गईं। अब नए सिरे से एक बार फिर नक्सलियों के गढ़ समझे जाने वाले इस इलाके में थल सेना का ट्रेनिंग कैम्प शुरू करने की कवायद शुरू हो गई है। कहा गया है कि राज्य सरकार ने नारायणपुर कलेक्टर को निर्देश दिया है कि वह ओरक्षा में इस बाबत चुनी गई पांच सौ वर्ग किमी या 54 540 हेक्टेयर ज़मीन के बारे में सारी तथ्यात्मक जानकारियां फौरन उपलब्ध कराए।
सुविज्ञ सूत्रों का कहना है कि नक्सलियों पर दबाव बनाने के लिए सालों से अटके सेना के प्रस्ताव पर सरकार जल्द से जल्द आगे बढ़ने को उत्सुक है । नारायणपुर जिला प्रशासन के सूत्रों ने राज्य सरकार से इस तरह का पत्र आने की पुष्टि भी कर दी है। इधर यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि उन्होंने उक्त ज़मीन की सर्वे रिपोर्ट राजधानी रायपुर भेजी है या नहीं। बताया जा रहा है कि सेना के लिए जो हिस्सा चुना गया है वह ओरछा तहसील के सोनपुर -गारपा गांव के पास का है। सरकार यह पूरी सरकारी जमीन ट्रेनिंग सेंटर के लिए सेना को हस्तांतरित करना चाहती है।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रायपुर में हुई बैठक के बाद इस दिशा में चल रहे प्रयास और तेज हो गए हैं जिसमें उन्होंने साल 2026 तक नक्सलियों का सफाया करने का लक्ष्य रखा है। भारतीय सेना के लिए छत्तीसगढ़ अब नया क्षेत्र नहीं रह गया है।इसके लिए छत्तीसगढ -ओडिशा सब एरिया या कोसा का हेडक्वार्टस रायपुर में पिछले 14 सालों से काम कर रहा है। बस्तर में सेना की करीब हजार जवानों की टुकड़ी जून 2010 में एक बार ट्रेनिंग करके भी जा चुकी है। पहले सेना अबूझमाड़ के भीतरी इलाकों में ट्रेनिंग करना चाहती थी पर उस वक्त नक्सली घटनाएं चरम पर थीं। लगातार नक्सली पुलिस को निशाना बना रहे थे। तो ऐसे में यदि उनका सेना से सामना होता तो जवाबी कार्रवाई के बाद के कठोर नतीजों से क्षेत्र में नया बवाल खड़ा हो जाता ।
इसे देखते हुए अब सेना को कोंडागांव के पास की तीन जगह ट्रेनिंग के लिए उपलब्ध कराई गई थी। वहां जंगल वारफेयर और बाकी शेड्यूल के हिसाब से प्रशिक्षण हुआ और सेना की बटालियने लौट गईं । कहा गया है इस ट्रेनिंग के पूरा हो जाने के बाद सेना ने स्थायी ट्रेनिंग सेंटर खोलने के लिए गंभीरता से कोशिश की थी। अबूझमाड़ के अलावा छत्तीसगढ़ -ओडिशा सीमा पर भी जंगल के एक हिस्से को सेना की टीम ने देखा था पर किसी न किसी वजह से मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
बस्तर में सेना के स्थायी ट्रेनिंग सेंटर को लेकर 14 साल पहले भी सुरक्षा और पलटवार को लेकर पेंच फंसा था। मालूम हो कि अपने ट्रेनिंग सेंटर की सुरक्षा सेना खुद ही करती है। उस वक्त सेना का कहना था कि अगर नक्सली या दूसरा कोई समूह सेना के ट्रेनिंग कैम्प में घुस आया या उसने हमला किया तो सेना किस तरह से जवाब दे..। देश की सीमा पर तो सेना पलटकर गोलियों से जवाब देती है पर देश के भीतर ऐसा करना संभव नहीं है। ऐसा करने पर यह विवाद में फंसा सकता है। सेना इस तरही की किसी भी स्थिति में कानूनी सुरक्षा चाहती थी जैसा कि उसे कुछ राज्यों में उसे अफस्का या आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट के तहत मिलती है वह बिना एएफएसपीए लागू किये ही। सेना ने इन हालात में रूल्स ऑफ एंगेजमेंट्स को लेकर तत्कालीन केन्द्र सरकार से भी मार्गदर्शन मांगा था।
अपनी दीर्घकालीन योजना के तहत भारतीय सेना ट्रेनिंग के लिए पिछले कई सालों से सही जगह की तलाश कर रही है। उसकी इसी तलाश के दौरान सेना की नज़र बस्तर पर पड़ी। सेना छत्तीसगढ़ में नया स्पेशल फोर्सेस का ट्रेनिंग सेटर स्थापित करना चाहती है। स्पेशल फोर्सेस या पैरा कंमाडो की ट्रेनिंग के लिए अभी सैनिक हिमाचल प्रदेश के नाहन इलाके में बने ट्रेनिंग सेंटर में भेजे जाते हैं। कई देशों की स्पेशल फोर्स वहां ट्रेनिंग के लिए आती है लेकिन अब वहां कई तरह की समस्याएं पैदा हो रहीं हैं। सेना की ट्रेनिंग के लिए अब नाहन सेंटर से बड़ा क्षेत्रफल वाली जगह चाहिए। जिसमें घना जंगल और पहाड़ियां भी हो। यानी जवानों को ट्रेनिंग देने के लिए जिस तरह की जगह सेना चाहती है उस खांचे में अबूझमाड़ हर लिहाज से फिट बैठता है। साल 2010 मे ही तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने इस बात की पुष्टि की थी कि सेना अबूझमाड़ में स्पेशल फोर्सेस ट्रेनिंग सेंटर या मनुवर रेंज के लिए कोशिश कर रही है लेकिन इतने बरसों बात भी मामला फाइलों में ही अटका हुआ है।
पिछले कई सालों से राज्य की पुलिस और केन्द्र सरकार अबूझमाड़ से नक्सलियों को खदेड़ने की कोशिश कर रही है। जानकारों का मानना है कि यदि सेना इस क्षेत्र में ट्रेनिंग सेंटर चालू करती है तो इससे नक्सलियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव और बढ़ेगा। चूंकि सेना बहुत अंदरूनी इलाकों में ट्रेनिंग सेंटर चालू करेगी इससे अपने आप ही आसपास का बड़ा इलाका नक्सलियों की गतिविधियों से मुक्त हो जाएगा।
समीक्षा की जा रही है- गृहमंत्री राज्य के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा का कहना है कि सेना को ट्रेनिंग सेंटर के लिए अबूझमाड़ में 500 वर्ग किमी की जगह देने का प्रस्ताव 2009 का है। इस प्रस्ताव की राज्य सरकार समीक्षा कर रही है। इसमें वहां के लोगों का भी मत लिया जा रहा है।सारी बातों को समझने के बाद राज्य सरकार राज्य और लोगों के हित को देखते हुए ही कुछ फैसला करेगी। | ट्रेनिंग सेंटर के लिए फाइलों की दौड़.. ओरछा के सोनपुर-गारपा इलाके में ट्रेनिंग सेंटर के लिए जमीन हासिल करने के लिए सेना कई सालों से प्रयासरत है। राजस्व और आपदाप्रबंधन विभाग नारायणपुर कलेक्टर को पिछले महीने सात अगस्त को लिखा गया पत्र ही इसकी पुष्टि कर रहा है। प्रदेश के एक बड़े समाचार पत्र ने उस पत्र की प्रतिलिपि अपने पास होने का दावा भी किया है। कहा गया है कि खुद राज्य सरकार 13 सितंबर 2017 से इस मुद्दे को लेकर नारायणपुर के राजस्व अमले से करेसपांडेंस कर रही है। नारायणपुर जिला प्रशासन से इस जमीन का राजस्व सर्वेक्षण संंबंधी कार्यवाही की तथ्यात्मक जानकारी मांगी जा रही है, जो आज तक उसे नहीं दी गई । 2017 में दो पत्र भेजने के सात सालों बाद मंत्रालय ने एक बार फिर नारायणपुर कलेक्टर से उक्त सर्वे की जानकारी मांगी है। |
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■ बंधन नहीं , नक्सली जहां मिलें वहां मारें - सुंदरराज
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