नीरू सैनी, अद्भुत ऊर्जा और अदम्य साहस से लबालब महिला
● 50 पार की उम्र में वो सब कुछ किया जिसके लिए कभी उनका दिल मचलता था और जिन कामों में सिर्फ युवाओं के हस्तक्षेप की कल्पना होती है...
मुम्बई। कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील थीं. और एक ऐसी महिला जिन्होंने बहुत-सी रूढ़ियों को तोड़ा. वह विदेश में पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय नागरिक भी थीं और बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला. साथ ही ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं।
आजादी के पहले भारत में किसी भी महिला का उच्च शिक्षा में पढ़ना इतना आसान नहीं था। लेकिन कॉर्लेनिया ने वकालत की पढ़ाई कर सारे बंधनों को तोड़ा। परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक पाने के बावजूद उन्हें महिला होने के नाते स्कॉलरशिप से दूर रखा गया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके लिए ऑक्सफोर्ड जाकर पढ़ना मुश्किलों भरा था। तब कुछ अंग्रेज महिलाओं की मदद से उनके लिए फंड का इंतजाम किया गया और कॉर्नेलिया वकालत की पढाई के ऑक्सफोर्ड पहुंची। 1892 में कॉर्नेलिया ने बैचलर ऑफ सिविल लॉ की परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बनीं। लेकिन कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया। क्योंकि उस काल में महिलाओं को वकालत के लिए रजिस्टर करने और प्रेक्टिस की इजाजत नहीं थी।
लेकिन कॉर्नेलिया ने हार नही मानी। भारत लौटकर वापस आने के बाद वो महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए मदद करने लगीं। काफी अथक परिश्रम के बाद कार्नेलिया को सफलता हाथ लगीं। वकालत के दौरान कार्नेलिया ने 600 से ज्यादा महिलाओं को कानूनी सलाह दी। 1922 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने की आज्ञा दी। तब कार्नेलिया को कानून की डिग्री हासिल हुई। कार्नेलिया कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं।
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