• 29 Apr, 2025

शरद पूर्णिमा और राठौर चौक का कवि सम्मेलन..

शरद पूर्णिमा और राठौर चौक का कवि सम्मेलन..

★ रविशंकर राठौर और उनके परिवार जनों ने इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन को आयोजित करने का बीड़ा उठाया और लगभग 40 साल तक इसे सफलतापूर्वक आयोजित करते रहे।

संजय नैयर ,रायपुर
संजय नैयर ,रायपुर


शरद पूर्णिमा के साथ रायपुरवासियों के जहन में एक बहुत रसमय शाम या पूरी रात शामिल है। मान्यता है कि पूर्णिमा का चांद 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। बचपन में हमारे लिए शरद पूर्णिमा के केवल दो आकर्षण हुआ करते थे, पहला चांद की दूधिया रोशनी में रची  स्वादिष्ट खीर और दूसरा राठौर चौक में शरद पूर्णिमा के दिन आयोजित होने वाला कवि सम्मेलन।

      गंज मंडी प्रांगण में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अखिल भारतीय कवि सम्मेलन उस समय रायपुर शहर और पूरे छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख आकर्षण हुआ करता था। रात 10  बजे शुरू होने वाला यह कवि सम्मेलन पौ फटते तक चलता था और रात भर कविता के  विभिन्न रसों की बयार बहा करती थी। 1970 के दशक में शुरू हुआ यह कवि सम्मेलन वर्ष 2010 तक आयोजित किया जाता रहा जिसमें देश के सभी विख्यात और लब्धप्रतिष्ठ कवि शामिल हुआ करते थे। स्वर्गीय गोपाल दास नीरज, संतोष आनंद, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, हुल्लड़ मुरादाबादी,सुरेंद्र शर्मा, ओमप्रकाश आदित्य, अशोक चक्रधर, मधुप पांडे, माया गोविंद ,प्रभा ठाकुर, एकता शबनम  जैसे अनेकानेक प्रसिद्ध कवियों और कवियित्रियों  को यहां सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बताते हैं कि इस कवि सम्मेलन में केवल स्व डा.हरिवंश राय बच्चन को छोड़कर देश के सभी स्वनामधन्य कवियों ने शिरकत की।
 
      राठौर चौक निवासी स्व श्री  रविशंकर राठौर और उनके परिवार जनों ने इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन को आयोजित करने का बीड़ा उठाया और लगभग 40 साल तक इसे सफलतापूर्वक आयोजित करते रहे। उस समय कवि सम्मेलन में आने वाले सभी कवियों को वो अपने घर पर ही ठहराते थे और अतिथि सत्कार करते थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि हम लोग रात में खाना खाने के बाद शाल और कंबल लेकर कवि सम्मेलन में पहुंचते थे क्योंकि शरद पूर्णिमा तक हल्की गुलाबी ठंड हो जाया करती थी। रात भर कविताओं का आनंद लेने के बाद सुबह-सुबह घर वापस लौटते थे। पिताजी के पत्रकार होने का इतना फायदा जरूर मिलता कि हम लोगों को बैठने के लिए गद्दा मिल जाता था जबकि बाकी लोग दरियों में बैठा करते थे। जिस बार कवि सम्मेलन में नीरज जी आते थे तो उनका अलग ही क्रेज होता था, श्रोता कवि सम्मेलन की शुरुआत से ही नीरज जी को सुनने की फरमाइश करते थे लेकिन आयोजक अक्सर नीरज जी को कवि सम्मेलन के अंत में ही मंच पर बुलाते थे ताकि जनता वहां जमी रहे। लगभग 40 वर्ष तक सफलतापूर्वक आयोजन के पश्चात स्वर्गीय श्री रविशंकर राठौर के निधन के उपरांत धीरे-धीरे यह कवि सम्मेलन अपनी गरिमा खोने लगा। कवियों की बढ़ती फीस और बढ़ते नखरों के कारण शनै शनै यह कवि सम्मेलन दम तोड़ने लगा और वर्ष 2010 के बाद पूरी तरह बंद हो गया। लेकिन राठौर चौक का यह कवि सम्मेलन हमारी यादों में ताउम्र जीवित रहेगा।